संसार एक कर्म भूमि है| मनुष्य को कर्मरत रहते हुए, बिना फल की चिन्ता किए अपना कर्तव्य निभाना चाहिए| कर्म करने में बहुत बाधाएं आती हैं, परन्तु हमें हर बाधा को स्वीकार कर उसका सामना करना चाहिए, तथा लक्ष्य प्राप्त करना चाहिए| यदि हमारा मनोबल कमजोर रहेगा तो हम असफल रहेंगे| अत: मनोबल और आत्मबल को सम्बध्द करके हम एक ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं जिससे सफलता स्वयं ही हमारे कदम चूमेगी|
“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”